बिहार की मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) क्यों किया जा रहा है?


बिहार की मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) क्यों किया जा रहा है?
Why has the Election Commission of India initiated a Special Intensive Revision (SIR) in Bihar?


संविधानिक प्रावधान और कानूनी आधार

 

अनुच्छेद 324:
भारत के संविधान का अनुच्छेद 324 संसद और राज्य विधानमंडलों के चुनाव के लिए मतदाता सूचियों की तैयारी, पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को देता है।
अनुच्छेद 326:
यह प्रावधान करता है कि हर भारतीय नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, उसे मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का अधिकार है।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (RP Act) के तहत मतदाता सूचियों की तैयारी होती है:
धारा 16: प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए एक मतदाता सूची होनी चाहिए।
धारा 19: व्यक्ति की आयु निर्धारित तिथि (qualifying date) को 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए और वह “साधारण निवासी” होना चाहिए।

धारा 20: “साधारण निवासी” की परिभाषा देती है। यदि कोई व्यक्ति अस्थायी रूप से अनुपस्थित है तो भी वह अपने निवास स्थान का साधारण निवासी माना जाएगा। केवल किसी क्षेत्र में मकान होने से उसे वहाँ का मतदाता नहीं बनाया जा सकता।

 

SIR क्यों शुरू किया गया है?

RP Act की धारा 21
निर्वाचन आयोग को किसी भी समय विशेष कारणों से मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण (Special Revision) करने की अनुमति देती है।

 

ECI का तर्क:
पिछले 20 वर्षों में शहरीकरण और प्रवास (migration) के कारण मतदाता सूचियों में भारी संख्या में जोड़ और घटाव हुए हैं।
इससे डुप्लिकेट नामों की संभावना बढ़ गई है।
केवल नागरिकों के नाम मतदाता सूची में बने रहें, यह आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है।

 

बिहार से शुरुआत क्यों?

देशभर में SIR की योजना बनाई गई है, पर बिहार से शुरुआत इसलिए की गई क्योंकि वहाँ नवंबर 2025 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं।
बिहार में पिछली SIR वर्ष 2003 में हुई थी।
इस बार की अर्हता तिथि 1 जुलाई निर्धारित की गई है।

 

इस बार की प्रक्रिया क्या है?

2003 की SIR में मतदाता सूची की प्रति लेकर घर-घर जाकर सत्यापन हुआ था।
वर्तमान SIR में प्रत्येक मतदाता को Booth Level Officers (BLOs) को गणना प्रपत्र (enumeration form) भरकर देना होगा।

जो मतदाता 2003 की सूची में पंजीकृत हैं, उन्हें अतिरिक्त दस्तावेज़ नहीं देने होंगे, केवल 2003 की सूची का अंश देना होगा।
जो मतदाता 2003 के बाद जुड़े हैं, उन्हें अपनी और अपने माता-पिता की जन्मतिथि और स्थान के दस्तावेज़ देने होंगे।

 

प्रमुख विवाद और चिंताएं

1. प्रक्रिया की विशालता और समयसीमा

पक्ष में तर्क:
2003 में यह कार्य 31 दिनों में बिना तकनीक के हुआ था, अब तकनीक की मदद से भी संभव है।
1 लाख BLOs, 4 लाख स्वयंसेवक और 1.5 लाख राजनीतिक दलों द्वारा नियुक्त Booth Level Agents इस कार्य में लगे हैं।

विरोध में तर्क:
8 करोड़ मतदाताओं से फॉर्म मंगवाना और उनमें से 3 करोड़ से दस्तावेज़ लेना एक बहुत बड़ा काम है।
प्रवासी मज़दूरों, छात्रों जैसे समूह समयसीमा में फॉर्म नहीं दे पाएंगे।
फील्ड स्तर के इतने कर्मचारियों के बावजूद बहिष्करण (exclusion) और समावेशन (inclusion) में त्रुटियाँ संभव हैं।

 

2. आधार कार्ड का बहिष्करण

पक्ष में तर्क:
आधार न तो नागरिकता का प्रमाण है और न जन्मतिथि का।
आधार कार्ड पर यह साफ लिखा होता है कि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
RP Act और संविधान के अनुरूप, आधार को वैध दस्तावेज़ नहीं माना गया है।
अनुमोदित दस्तावेजों में जाति प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर, भूमि आबंटन प्रमाण पत्र आदि हैं।

विरोध में तर्क:
आज आधार एक सार्वभौमिक पहचान पत्र बन चुका है, खासकर गरीब वर्गों के लिए जिनके पास अन्य दस्तावेज़ नहीं होते।
निर्वाचन नियम 1960 (Registration of Electors Rules) के अनुसार, Form 6 में आधार अनिवार्य रूप से मांगा गया है।
अब EC ने आधार के साथ अन्य दस्तावेज़ों की भी मांग की है, जिससे आमजन को परेशानी हो सकती है।

 

3. प्रवासियों का बहिष्करण

पक्ष में तर्क:
RP Act के अनुसार केवल ‘साधारण निवासी’ को ही मतदाता सूची में शामिल किया जाना चाहिए।
जो प्रवासी शिक्षा या रोजगार हेतु लंबे समय से कहीं और रह रहे हैं, उन्हें उस क्षेत्र की सूची में जोड़ा जाना चाहिए जहाँ वे रह रहे हैं।

विरोध में तर्क:

RP Act कहता है कि अस्थायी रूप से अनुपस्थित व्यक्ति ‘साधारण निवासी’ माने जाते हैं।
प्रवासी मज़दूर अक्सर अपने मूल स्थान पर लौटते रहते हैं, उनके परिवार और संपत्ति वहीं होती है।
वे अपने मूल स्थान पर वोट देने का अधिकार बनाए रखना चाहते हैं।
आगे का रास्ता / समाधान
मतदाता सूची में अयोग्य व्यक्ति का नाम होना उतना ही गलत है जितना कि योग्य व्यक्ति का नाम नहीं होना।
इसीलिए, मतदाता सूचियों की गहन और निष्पक्ष जांच अनिवार्य है।
प्रक्रिया को समावेशी, सुलभ, और मानव-केंद्रित बनाना जरूरी है, ताकि कोई भी पात्र मतदाता न छूटे

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