दल बदल कानून


दल बदल कानून

भारतीय राजव्यवस्था

Paper- 3 unit-1   दल बदल कानून


खबरों में क्यों :-

हालिया न्यायालय निर्णय (स्पीकर के अधिकारों के संबंध में):

हाल के वर्षों में, विशेष रूप से अप्रैल 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने दल-बदल कानून (Anti-Defection Law) के तहत स्पीकर की शक्तियों और भूमिका के बारे में महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। ये टिप्पणियां भारत राष्ट्र समिति (BRS) द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आईं, जिसमें तेलंगाना विधानसभा के स्पीकर पर दल-बदल के मामलों में देरी करने का आरोप लगाया गया था।

 

दल-बदल कानून क्या है?

दल-बदल कानून (Anti-Defection Law) भारत में संविधान की दसवीं अनुसूची (Tenth Schedule) के तहत 1985 में लागू किया गया था, जिसे 52वें संवैधानिक संशोधन द्वारा जोड़ा गया। इसका मुख्य उद्देश्य सांसदों और विधायकों द्वारा अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होने या पार्टी के खिलाफ वोट देने की प्रवृत्ति को रोकना है, ताकि राजनीतिक स्थिरता बनी रहे।

 

प्रमुख बिंदु:-

  1. दल-बदल के आधार:
  • यदि कोई सांसद/विधायक अपनी मूल पार्टी से इस्तीफा देता है।
  • यदि वह पार्टी के निर्देशों के खिलाफ वोट देता है या मतदान से अनुपस्थित रहता है।
  • यदि वह स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है।
  • यदि कोई निर्दलीय विधायक/सांसद किसी पार्टी में शामिल हो जाता है।
  1. अपवाद:
  • यदि किसी पार्टी के दो-तिहाई सदस्य किसी अन्य पार्टी में विलय करने का निर्णय लेते हैं।
  • यदि कोई विधायक/सांसद अपनी पार्टी से अलग होकर नई पार्टी बनाता है और उसके साथ दो-तिहाई सदस्य शामिल हों।

 

स्पीकर के अधिकार:

स्पीकर (लोकसभा या विधानसभा के अध्यक्ष) को दल-बदल कानून के तहत निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं:

  1. अयोग्यता का निर्णय:
  • स्पीकर को यह तय करने का अधिकार है कि कोई सांसद/विधायक दल-बदल के आधार पर अयोग्य है या नहीं।
  • उनका निर्णय अंतिम माना जाता है, लेकिन इसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
  1. निष्पक्षता की अपेक्षा:
  • स्पीकर को निष्पक्ष और तटस्थ रूप से निर्णय लेना होता है।
  1. प्रक्रिया का पालन:
  • स्पीकर को शिकायत मिलने पर जांच करनी होती है, जिसमें संबंधित सदस्य को अपना पक्ष रखने का अवसर देना अनिवार्य है।

 

प्रमुख बिंदु

  1. न्यायालय की शक्ति:
  • सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यदि स्पीकर दल-बदल याचिकाओं पर निर्णय लेने में “अनिश्चितकालीन देरी” करता है, तो न्यायालय “शक्तिहीन” नहीं है।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह संविधान के अनुच्छेद 142 (विशेष शक्तियां) का उपयोग कर सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जाए कि स्पीकर उचित समय के भीतर निर्णय ले।
  1. उचित समय सीमा:
  • न्यायालय ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या संवैधानिक न्यायालय स्पीकर को दल-बदल याचिकाओं पर एक निश्चित समयसीमा (उदाहरण के लिए, 3 महीने) के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दे सकते हैं।
  • केशवम मेघचंद्र सिंह बनाम मणिपुर विधानसभा स्पीकर (2020) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया था कि स्पीकर को दल-बदल याचिकाओं पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए।
  1. निष्पक्षता और जवाबदेही:
  • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि स्पीकर, जो दल-बदल कानून के तहत एक अर्ध-न्यायिक ट्रिब्यूनल की तरह कार्य करता है, को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए।
  • यदि स्पीकर की कार्यवाही में पक्षपात (mala fides) या मनमानी (perversity) पाई जाती है, तो उसका निर्णय न्यायिक समीक्षा (judicial review) के अधीन होगा।
  1. निर्णय में देरी की समस्या:
  • तेलंगाना के मामले में, याचिकाओं में कहा गया कि स्पीकर ने मार्च-अप्रैल 2024 में दायर दल-बदल याचिकाओं पर जनवरी 2025 तक भी नोटिस जारी नहीं किया था, जिसे न्यायालय ने “अनुचित देरी” माना।
  • न्यायालय ने कहा कि ऐसी देरी से दसवीं अनुसूची (Tenth Schedule) का उद्देश्य, जो राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करना है, प्रभावित होता है।
  1. स्वतंत्र ट्रिब्यूनल का सुझाव:
  • सर्वोच्च न्यायालय ने पहले भी, जैसे कि किहोतो होलोहन बनाम ज़चिल्हु (1992) और केशवम मेघचंद्र सिंह (2020) मामलों में, सुझाव दिया था कि स्पीकर की जगह एक स्वतंत्र ट्रिब्यूनल या चुनाव आयोग को दल-बदल मामलों का निर्णय करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है, ताकि पक्षपात के आरोपों को कम किया जाए।

 

Source- newspaper editorial

FOLLOW US