न्यायिक सक्रियता : महत्व एवं चिंताएं
संदर्भ – लंदन के ऑक्सफोर्ड यूनियन में एक कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने कहा कि “न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी लेकिन न्यायिक सक्रियता को न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए।”
- न्यायिक समीक्षा की शक्ति का उपयोग संयम से किया जाना चाहिए तथा इसका प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन होता है ।
- सीजेआई के अनुसार, यदि विधायिका या कार्यपालिका नागरिकों के मौलिक अधिकारो की रक्षा करने के अपने कर्तव्य की पूर्ति में विफल रहती है तब न्यायपालिका हस्तक्षेप करेगी।
न्यायिक सक्रियता क्या है ?
- न्यायपालिका द्वारा स्वप्रेरणा से विधायका व कार्यपालिका द्वारा पारित क़ानून एवं आदेशों की समीक्षा करना तथा ऐसे प्रावधान जो संविधान के मूल ढांचे के विपरीत हो को शून्य घोषित करना, न्यायिक सक्रियता कहलाता है ।
न्यायिक सक्रियता को दो अर्थों में लिया जा सकता है –
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सकारात्मक न्यायिक सक्रियता- इसके तहत न्यायपालिका अत्यधिक सक्रियता दिखाते हुए अपने कार्यो को कुशलता व तीव्रता के साथ सम्पादित करती है ।
जनहित याचिका – 1979 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पी.एन. भगवती और वी. आर. कृष्ण अय्यर ने पहली बार PIL को स्वीकार किया अर्थात् जनता के हित में कोई भी जागरूक याचिका दायर कर सकता है । भारत में पुष्पा कपिला हिंगोरानी(जनहित याचिका की जननी) ने सर्वप्रथम हुसैन आरा बनाम बिहार राज्य वाद में जनहित याचिका दायर की थी । जनहित याचिका न्यायिक सक्रियता का सबसे लोकप्रिय रूप है कालांतर में सभी न्यायालयो द्वारा इसे स्वीकार किया जाने लगा।
- नकारात्मक न्यायिक सक्रियता- यदि न्यायपालिका अधिक सक्रिय हो कर विधायिका एवं कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने लगे तो इसे नकारात्मक न्यायिक सक्रियता /न्यायिक अतिरेक कहते है
निम्नलिखित प्रावधानो के कारण इसे प्रोत्साहन मिलता है –
- संविधान की व्याख्या करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय के पास सुरक्षित है ।
- न्यायिक पुनरावलोकन की अवधारणा
- अनुच्छेद 142 के तहत उच्चतम न्यायालय के आदेशों का प्रवर्तन
न्यायिक सक्रियता के अनेक उदाहरण
संविधान में संशोधन विधायिका कर सकती है परंतु न्यायपालिका ने भी समय-समय पर संविधान में संशोधन किए है –
(1)अनुच्छेद 21 प्राण व दैहिक स्वतंत्रता को व्यापक किया तथा विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को विधि की सम्यक प्रक्रिया कर दिया ।
(2)अनुच्छेद 124 में कॉलेजियम की व्याख्या नहीं थी किंतु न्यायपालिका ने कॉलेजियम जोड़ दिया ।
(3) अनुच्छेद 368 में बुनियादी ढांचे की अवधारणा का प्रावधान जोड़ दिया गया ।
न्यायिक सक्रियता के लाभ
(1) न्यायिक सक्रियता के कारण जनहित याचिका की अवधारणा को स्वीकार किया गया , जिससे समाज के आरक्षित वर्ग व कमजोर वर्गों को न्याय प्राप्त करने में सहायता मिलती है ।
(2) विधायिका और कार्यपालिका की उदासीनता के कारण उत्पन्न रिक्त स्थान को न्यायपालिका ने भरा है ।
(3) न्यायपालिका ने विधायिका और कार्यपालिका की निरंकुशता को नियंत्रित किया है।
(4) नागरिकों के अधिकारो की रक्षा एवं संविधान के आदर्शों की रक्षा सुनिश्चित होती है ।
(5) न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक प्रभावी उपाय किये है ।
न्यायिक सक्रियता की चिंताएँ
(1)न्यायिक सक्रियता में न्यायपालिका अधिक सक्रिय हो जाती है जो शक्ति पृथक्करण तथा शक्ति संतुलन के सिद्धांतों के विरुद्ध है ।
(2)लोकतंत्र में वास्तविक शक्ति जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होनी चाहिए किंतु न्यायिक सक्रियता से वास्तविक शक्ति न्यायपालिका के पास आ जाती है ।
(3)न्यायिक सक्रियता द्वारा न्यायपालिका , कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करती है जिस से कार्यपालिका के कार्यकुशलता में कमी आती है ।
(4) जनहित याचिकाओं की अत्यधिक संख्या के कारण न्यायालयों का कार्यभार बढ़ रहा है ।
(5)न्यायिक सक्रियता आर्थिक सुधारो को लागू करने में बाधा उत्पन्न करती है , पर्यावरण को आधार बनाकर अनेक आर्थिक परियोजनाओं पर न्यायपालिका द्वारा रोक लगायी गई , जिससे देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा इसके कारण बैंको का NPA बढ़ता है।
Source – Dainik Jagran + SBA notes